इन दिनों राजस्थान की राजनीति के समीकरण बड़ी तेजी से बदल रहे है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने किसान आंदोलन को लेकर किसानों का समर्थन करते हुए केंद्र सरकार से गढ़बंधन तोड़ना का बयान दे चुके है। हालांकि अभी तक बेनीवाल का एनडीए से गठबंधन टूटा नहीं है।
हनुमान बेनीवाल जहां पर भी जाते है अपने मंच से राजस्थान में 2023 में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने की बात कहना नहीं भूलते है। जिसमे हनुमान बेनीवाल यह भी कहते है कि अगर प्रदेश में तीसरे मोर्चे की सरकार बनती है तो उसमे किसान वर्ग का अहम हिस्सा होगा और किसानों को कोई कमी नहीं आने दी जाएगी साथ ही किसान का बेटा मुख्यमंत्री बनने की बात भी कहते है।
अभी हाल ही में हुए ग्रामपंचायत चुनाव में भारतीय ट्राईबल पार्टी (बीटीपी ) को डूंगरपुर में जिला प्रमुख के चुनाव मे कांग्रेस और बीजेपी ने साथ में मिलकर हरा दिया। जिसके बाद में बिटीपी गहलोत सरकार से नाराज हो गई। उसके बाद में बिटिपी के दोनों विधायकों के गहलोत की सरकार को दिया गया समर्थन वापस ले लिया। हालांकि भारतीय ट्राईबल पार्टी के दोनों विधायकों के गहलोत सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद भी गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं है। क्युकी की गहलोत के पास अपनी सरकार बचाने के लिए बहुमत की संख्या है। लेकिन बिटिपी अब प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहिए है।
अब बात कर लेते है असासुद्दीन ओवैसी की तो उनकी पार्टी एमआईएम भी राजस्थान की राजनीति पर नजर रख रही है। यहां पर ओवैसी के प्लस पॉइंट यह है कि प्रदेश में कांग्रेस से मुस्लिम वर्ग नाराज चल रहा है। इस नाराजगी के बाद और भी ज्यादा नाराज होने का कारण यह भी है कि जैसलमेर में रुबिया खातून को जिला प्रमुख पद पर कांग्रेस में हरा दिया। जिसके कारण भी ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश में कांग्रेस से मुस्लिम वर्ग में और भी दरार पड़ गई है।
अब राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले तीसरा मोर्चा का गठन हो जाएगा। यानी प्रदेश में इस बार कांग्रेस और बीजेपी के अलावा तीसरा मोर्चा भी अपनी पूरी ताकत विधानसभा चुनाव में झोंक देना चाहता है। प्रदेश में आगामी विधनसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा के गठन में प्रमुख तौर पर देखा जाए तो ओवैसी की पार्टी एमआईएम और हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी अहम घटक हो सकती है। इसके पीछे का एक कारण यह भी माना जा रहा है में राजस्थान में अभी तक जाटों का मुख्यमंत्री नहीं बना है तो जाहिर सी बात है जाट भी अपनी जाती का मुख्यमंत्री प्रदेश में चाहता है। इसलिए जाट वर्ग भविष्य में सीएम पद पर कब्जा करने के लिए किसी से भी गठबंधन कर सकता है। दूसरी तरफ प्रदेश के दलितों को भी कांग्रेस और बीजेपी तरहीज नहीं देती है। इसलिए दलितों को मजबूत करने के लिए दलित वर्ग भी तीसरे मोर्चे का साथ से सकता है।
वैसे भी प्रदेश में बीटीपी जैसी छोटी पार्टी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी से नाराज है। तो यह पार्टी भी कांग्रेस और बीजेपी को छोड़ कर तीसरे मोर्चे का साथ दे सकती है।
मिली जानकारी के मुताबिक राजस्थान की राजनीति में अंदर खाने बहुत कुछ चल रहा है। राजस्थान के मुस्लिम वर्ग हैदराबाद जा कर ओवैसी से भी मुलाक़ात कर चुके है। आप को बता दे के बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे है और उनमें से 5 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है जिसका सीधा फायदा ओवैसी को मिला और मुस्लिम समुदाय में उनकी लोगप्रियता बड़ी है।
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