मध्य प्रदेश में 28 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव में जीत हासिल करना बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए बहुत अहम है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के सामने अपनी सरकार बचाने के लिए यह चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। तो कांग्रेस के सामने फिर से सत्ता में आने के लिए चुनाव जीतने का दबाव है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेताओं की लाखों कोशिश के बाद भी अपने जीते हुए विधायकों को पार्टी के अंदर रोकने में नाकाम साबित हो रही है। और धीरे धीरे कांग्रेस के विधायक पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। पिछले 7 महीनों में कांग्रेस के 26 विधायक कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। और अभी भी मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी यह दावा कर रही है कि कुछ और विधायक उनके संपर्क में है।
ऐसे में माना जा रहा है कि उपचुनाव का परिणाम आने से पहले कुछ और झटके कांग्रेस पार्टी को दिया जा सकता है। दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के नेता इल्जाम लगा रहे हैं कि भाजपा सौदेबाजी पर उतर आई है। 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया कि जो नेता कांग्रेस पार्टी से नाराज हैं उन्हें मना कर काम में लगाया जाए। इसके लिए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सभी जिलों में पहुंचकर 'संगत में पतंग' कार्यक्रम किया। इस कार्यक्रम के तहत वे ग्वालियर चंबल को छोड़कर बाकी सभी जिलों में पहुंचे और नाराज कार्यकर्ताओं को मनाया।
जिसका फायदा भी कांग्रेस पार्टी को पहुंचा और 114 सीटों के साथ निर्दलीय, बसपा और सपा के समर्थन में सरकार भी बनाई। लेकिन विधायकों की पार्टी से नाराजगी की खबर लगातार सामने आती रही थी। धीरे-धीरे करके मनमुटाव इस कदर बढ़ा कि राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। जिसके कारण कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई इसी वजह से कमलनाथ ने 20 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
इसी वजह के कारण मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उसने माना जा रहा था कि 3 विधायकों के निधन सहित 25 सीटों पर उपचुनाव होंगे। लेकिन बाद में कांग्रेस के तीन और विधायकों ने अलग-अलग तारीख को पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल हो गए।
सूत्रों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा होने के बाद यह माना जा रहा था कि अब विधायकों के इस्तीफे और समर्थन का सिलसिला रुक जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं यह सिलसिला अभी भी जारी है। पहले भगवानपुरा से निर्दलीय विधायक केदार चिडा़भाई डावर ने शिवराज सिंह की सरकार को समर्थन देने की घोषणा की। और अब कांग्रेस के ही विधायक राहुल लोधी ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।
मिली खबर के मुताबिक बताया जा रहा है कि इतने झटके मिलने के बाद भी कांग्रेस पार्टी के अंदर संवादहीनता की स्थिति है। विधायकों से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का संपर्क दो बना हुआ है, पर वह भविष्य को लेकर चिंतित भी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा का कहना है कि मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी सौदेबाजी पर उतर आ चुकी है। काले धन की बोरी खोल दी है।
वहीं भारतीय जनता पार्टी के नेता पंकज चतुर्वेदी ने ट्वीट कर कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोपों पर कहा कि कंपनी बाहदुर कह रहे हैं कि भाजपा चुनाव हार जाएगी और 'के' कांग्रेस के लोग विधायकी छोड़ रहे हैं। नादान बच्चा भी समझ जाएगा कि चुनाव कौन हारा है।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस विधायक की तरफ से इस्तीफा देने के बाद में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ट्वीट कर कहा कि मामा की झोली में काली कमाई में एक और विधायक बिका। लगता है भाजपा में भाजपाइयों से भी ज्यादा बिके हुए गद्दार कांग्रेसी विधायक मामा भर देगा। मुझे उन ईमानदार संघ और भाजपा कार्यकर्ताओं पर दया आ रही है। जिन्होंने भाजपा को यहां तक पहुंचाने का काम किया।
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